प्रकृति का असंतुलन पर निबंध | Essay on Imbalance of Nature in hindi | Prakriti ka asantulan par Nibandh
प्रकृति का असंतुलन
पर निबंध
प्रकृति एवं मनुष्य का अटूट संबंध हैं। प्रकृति ने मानव के सुखी जीवन के लिए अनगिनत सुविधाएं प्रदान की हैं। मनुष्य का सुखी जीवन प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर करता हैं। मनुष्य की बढ़ती हुई आवश्यकताएं प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ रही हैं। जब पर्यावरण में दूषित तत्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक बढ़ जाती हैं और आवश्यक तत्वों की कमी हो जाती हैं। तो पर्यावरण प्राणियों के लिए हानिकारक हो जाता हैं।
आधुनिक मानव सभ्यता की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण प्राकृतिक संतुलन बदल रहा है तथा प्रदूषण बढ़ रहा हैं। मानव की आवासीय, औद्योगिक नागरीकरण, कृषि उत्पादन बढ़ाने की समस्याओं ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ कर प्रदूषण को बढ़ाया हैं। यातायात के साधनों ने भी प्रदूषण को बढ़ाया हैं। इसी प्रकार कूड़ा-करकट इधर-उधर फैकने से जल, वायु, भूमि प्रदूषण को बढ़ावा मिला। जोर से संगीत सुनने, हाॅन बजाने से ध्वनि प्रदूषण बढ़ा। इस प्रकार किसी भी प्रकार का प्रदूषण फैलाने में कहीं न कहीं मनुष्य ही जिम्मेदार हैं।
जल सभी प्राणियों एवम पेड़ पौधों के लिए जीवन दायक तत्व हैं। इसमें अनेक कार्बनिक अकार्बनिक खनिज तत्व एवम् गैसें धुली होती हैं। यह तत्व जब संतुलित मात्रा में जल में घुल जाते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है। प्रदूषित जल से हैजा, टाइफाइड, पीलिया आदि रोगों को बढ़ावा मिलता है। पेट्रोल और डीजल का धुआं वायु प्रदूषण को बढ़ाता है।
आज यदि हम इन सभी प्रकार के प्रदूषणों से हम अपने आप को नहीं बचा सकते तो मानव का विनाश निश्चित है। अतः पर्यावरण पर थोड़ा सा ध्यान देने पर हम इससे भी सुरक्षा पा सकते हैं। इसलिए हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे, जनसंख्या वृद्धि को रोकना होगा, पेयजल को शुद्ध करना होगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर चला जाए तो हम प्रकृति के असंतुलन के विनाशकारी परिणामों से सकते हैं तथा अपने अमूल्य जीवन को सुरक्षित रख सकते हैं।
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