प्रकृति का प्रकोप:भूकंप पर निबंध | Prakriti ka Prakop par Nibandh | प्रकृति का प्रकोप पर निबंध
प्रकृति का प्रकोप:भूकंप
पर निबंध
भूमिका
मनुष्य आदि काल से ही प्राकृति की शक्तियों के साथ संघर्ष करता आ रहा है। उसने अपनी बुद्धि साहस एवं शक्ति के बल पर प्रकृति के अनेक रहस्यों का उद्घाटन करने में सफलता प्राप्त की है, लेकिन इसकी शक्तियों पर पूर्ण अधिकार करने की सामर्थ्य मनुष्य में नहीं। प्रकृति अनेक रूपों में हमारे सामने आती हैं। बाढ़, सूखा, अकाल, आंधी, तूफान भूकंप आदि प्रकृति के विनाशकारी रूपी हैं।
भूकंप का अर्थ
भूकंप का अर्थ होता है- पृथ्वी का हिलना। पृथ्वी के गर्भ में किसी प्रकार की हलचल होने के कारण जब धरती का कोई भाग हिलने लगता है या कंपित होने लगता है तो उसे भूकंप की संज्ञा दी गई है। धरती का ऐसा कोई भी भाग नहीं है, जहां कभी न कभी भूकंप के झटके न आए हो। भूकंप के हल्के झटकों से तो विशेष हानि नहीं होती, लेकिन जब कभी जोर के झटके आते हैं तो वे प्रलयकारी दृश्य उपस्थित कर देते हैं।
भूकंप क्यों आते हैं ?
यह एक ऐसा रहस्य है, जिसका उद्घाटन आज तक नहीं हो सका, वैज्ञानिकों ने प्रकृति को मनुष्य के अनुकूल बनाने के लिए अनेक प्रयत्न किए हैं। वह गर्मी तथा सर्दी से स्वयं को बचाने के लिए वातावरण को अपने अनुकूल बना सकता है लेकिन भूकंप तथा बाढ़ आदि ऐसे प्रकोप है, जिनका समाधान मानव जाति सैकड़ों वर्षो के कठोर प्रयत्नों के बावजूद भी नहीं कर पाई है। भूकंप के विषय में लोगों के भिन्न-भिन्न मत है भूगर्भ शास्त्रियों का मत है कि धरती के भीतर तरल पदार्थ है। वह जब अंदर की गर्मी के कारण तीव्रता से फैलने लगता है तो पृथ्वी हिल जाती है। कभी-कभी ज्वालामुखी फटना भी भूकंप का कारण बन जाता है। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि जब पृथ्वी पर जनसंख्या जरूरत से अधिक बढ़ जाती है, तो प्रकृति उसे संतुलित करने के लिए भूकंप उत्पन्न करती है।
भूकंप के विनाशकारी रूप
बिहार ने बड़े-बड़े विनाशकारी भूकंप देखे हैं। हजारों लोग मौत के मुंह में चले गए। भूमि में दरारें पड़ गई, जिनमें जीवित प्राणी समा गए। पृथ्वी के गर्भ में कई प्रकार की विषैली गैसे उत्पन्न हुई, जिनसे प्राणियों का दम घुट गया। भूकंप के कारण जो लोग धरती में समा जाते हैं, उनके मृत शरीर को बाहर निकालने के लिए धरती की खुदाई करनी पड़ती है। यातायात के साधन नष्ट हो जाते हैं। लोग बेघर हो जाते हैं, धनवान है अकिचन बन जाते हैं और लोगों के जीने के लाले पड़ जाते हैं।
पुल निर्माण
जापान आदि कुछ ऐसे देश हैं जहां भूकंपों की संभावना अधिक रहती है। यही कारण है कि वहां पर मकान पत्थर, चुने तथा ईट के न होकर लकड़ी तथा गत्ते के बनाए जाते हैं। यह साधन भूकंप के प्रभाव को कम कर सकते हैं, पर उसे रोक नहीं सकते। भूकंप जब भी आता है तो जान और माल की हानि अवश्य होती है। भूकंप के हल्के झटके भी कम भयंकर नहीं होते, उससे भी भवनों को क्षति पहुंचती है।
उपसंहार :
आज का युग विज्ञान का युग कहलाता है पर विज्ञान प्रकृति के प्रकोप के सामने विवश हैं। मनुष्य को कभी भी अपनी शक्ति और बुद्धि का घमंड नहीं करना चाहिए। उसे हमेशा प्रकृति की शक्ति के आगे नतमस्तक रहना चाहिए।
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